दादा-दादी
दादा-दादी के झरते आँसू,
माँ! बतलाओ क्यों दिन-रात,
अश्रु-प्रवाह के वावजूद भी,
क्यों उनके अन्तस में प्यार।
सतत उपेक्षा,पर-निर्भरता नित्य
क्यों वर्तमान अभिशाप असह्य,
एकल क्यों परिवार अवनितल,
क्यों वृद्धों संग कटु-व्यवहार।
दोहराता इतिहास स्वयं को,
तथ्य नहीं क्या सत्य सृष्टि-तल,
चार दिवस का मेला यह यौवन,
जरा सुनिश्चित कंचन-तन पर।
माँ! वस्तुतः दादा-दादी प्रिय,
ईश्वरीय अदभुत उपहार,
रिश्तों की बगिया के बागवाँ,
स्त्रोत प्रेरणा, ऊर्जा के वाहक।
देखो माँ! सोचो किंचित मन,
तनिक प्रेम सम्मान के भूखे,
परिवार सुरक्षा-कवच सशक्त,
दादा-दादी आँखों के प्रिय तारे।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ(उ.प्र.)