दाँया मस्तिष्क चलाओ (गीत)
दाँया मस्तिष्क चलाओ (गीत)
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आओ प्यार करो थोड़ा दाँया मस्तिष्क चलाओ
(1)
बहुत तर्क कर लिया बहस की सीढ़ी कहो न चढ़ना
जोड़ -घटाना -गुणा -भाग का पागलपन है पढ़ना
बैठो थोड़ा-सा सकून से, मस्ती में कुछ गाओ
आओ प्यार करो थोड़ा दाँया मस्तिष्क चलाओ
(2)
खोने की यह कला अनूठी जग में है कहलाती
किसी-किसी को ही खोने की कला समझ यह आती
भीतर जो संगीत गूँजता, उसको सुनते जाओ
आओ प्यार करो थोड़ा दाँया मस्तिष्क चलाओ
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रचयिता: रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर(उ.प्र.)मो.9997615451