दहेज
दहेज
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नीलामी ही तो है दहेज।
कमसिन की हो या अघेड़ की।
धनात्मक हो या ऋणात्मक।
विवाह के बाद दहेज खत्म नहीं होते।
दहॆज की कथा शुरू होती है।
ताने तन जाते हैं।
जाने अनजाने शब्द ठन जाते हैं।
लेन-देन की परिभाषा को
समाजवादियों का संरक्षण है।
परिवारवादियों का असंसदीय सम्मान है।
अपराध घोषित चाहे हों लेन-देन
अघोषित होने होते हैं येन-केन प्रकारेण।
विवाह अनिवार्यतः प्रेम का अंकुरण है।
देह का अर्पण है।
मन का समर्पण है।
दहेज का विषय होकर
हो जाता है विष।
पारस्परिक यातना का
बन हो आता है मिष।(बहाना)
दुल्हन दहेज के बिना नहीं बन पाती
सौन्दर्यशालिनी बहू!
उसके मन के
त्रास,संताप और आत्मग्लानि की अवस्था का
क्या कहूँ।
शिक्षित दुलहनें दहेज विहीन हो तो
घुट-घुट कर अपने डिग्रियों को वाशिंग-मशीन में
डाल कर संतुष्टि ओढ़ लेती हैं।
आर्थिकता स्त्रैण हो।
दुलहनों के भींगे न नैन हों।
योग्यता शिक्षा न होकर जब तक
अर्थ रहेगा-
योग्यताओं को शासन निर्बाध
समुचित आर्थिक रक्षण दे-
अथवा योग्यता जैसा है वैसा असमर्थ रहेगा ।
नहीं तो,और
जबतक वर्तमान ईश्वर का विधान
हमारा प्रभु रहेगा।
चिढ़ायेगा विपन्न पात्र को,
उसकी योग्यता को
अयोग्य सम्पन्नता।
कहेगा तुम पढ़ी,मैं अपढ़ी-
मॆरा वर है डाक्टर
तुम्हारा —खटर-पटर——
दुल्हन के आँखों में ही आंसू
जाते हैं सूख।
दहेज में जो दर्द है
उनके हृदय में दहन देकर
जगाता रहा है हूक।
प्रथा हैरान है
परम्परा ओढ़कर
चुप।
दहेजविहीन दुल्हनें
आँसू रोकने
घर के किसी कोने में गुम-सुम।
शिक्षा को वैभव का वरदान होता।
वैभव को नहीं इसे, खरीद लेने का गुमान होता।
औरतों को औरत होने का गुमान होता।
बेटियों को फिर बेटी जन्म लेने का अरमान होता।
चलो दहेज को कोसते हैं।
आओ इस कलंक को पोंछते हैं।
सम भाव से पुत्रियों को पालें।
उनके जन्मसिद्ध अधिकार न टालें।
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