@ दहेज से परहेज @
दहेज के तिजारत मे, इंसा के जहालत में ।
उजङ गए कितने चाहत समा गए नासूत में ।।
निसाब के हिसाब में जवाब ब सवाब में ।
लख्ते जिगर के निकाह से अशर्फि के ख्वाब में ।।
सरेआम खरीद – फरोख्त में निसा के हवस में ।
जैसे मालूम पङती हो अग्नि जंगल पलाश में ।।
ऐसे ही फैला हुआ दहेज कुप्रथा समाज में ।
बेटो को बेचते दहेज के रूआब में ।।
मिल गया हो पानी जैसे कोई शराब में ।
दहेज के सेज पर लेटी हुई नारियां ।।
दुष्कर्मो के लपटो से घिरी हुई नारियां ।
चारो तरफ फैली दोजखी दुशवारिया ।।
दुल्हन दुकान दौलत की फैली ये कुरीतिया।
दोशीजा आमाज है हर किसी की ताक में । ।
लगे हुए है सभी दिलबर चाह जारदार मे ।
करता हूं इस घटिया सोच की आलोचना ।।
महिलाओ की आबरू आज बिक रही बाजार मे ।
बहन, बेटिओ वाले सोचो दिल से एक बारगी ।।
दूसरो के साथ ऐसा क्यो करते हो ।
जिससे तुम्हे खुद हो नाराजगी ।।
सोचे जरा मां अपने निकाह को ।
भाई सोचे अपने बहन के विलाप को ।।
किसी की आत्मा को ठेस पहुंचाकर ।
खुश रहा क्या कोई जहान में ।।
जितना दे सके कोई मां – बाप खुशी-खुशी-खुशी वो देता है बेटी को ।
मां -बाप परिजनो के आशीष से बङा क्या कोई दहेज है ।।
जब पूछा गया दहेज में क्या मिला ।
सब अपनी लम्बी- लम्बी हाँक रहे थे ।।
एक बाप ने अपनी बेटी दे दी ।
रिश्तेदार ट्रक मे झाँक रहे थे ।।
वादा करो दहेज से करोगे परहेज ।
स्मरण रहे जहन में ।।
किसी की खुशिया न उजङे इस चमन में ।
पायल की झनक, चुङियो की खनक ।।
बच्चो की किलकारियाँ पहुंचे सबके भवन में ।
ममत्वधारिणी, समाज नारी,पृथ्वी से भारी निर्मल सोच को नमन ।।
《 RJ Anand Prajapati 》