दहके दिनकर दिनभर अंबर
दहके दिनकर दिन भर अंबर
धरती तपती बाहर अंदर ,
कुपित हुई है पवन घूमती
लिये तेज लूओं का खंजर ।
जेठ माह है अकड़ दिखाता
घुमा रहा गरमी का हंटर ,
सभी ओर है ताप का नर्तन
मिले नहीं राहत का मंतर ।
शीतल नीर समझा रहा है
करो शुद्धता मेरे अंदर ,
बिन मेरे तुम सह न सकोगे
फैला तीव्र तपस का जन्तर ।
डॉ रीता सिंह
चन्दौसी सम्भल