दहेज एक कलंक !
दहेज
एक कलंक
आजके समाज पर।
हम पढ़े लिखे
सभ्य कहते
खुद को।
क्या है हम
सभ्य?
जला देते है
किसी और की बेटी
क्योंकि
वो हमारी बेटी नही।
लालच में
हो जाते है अंधे।
पर तब
क्यो देते
दोष दुसरो को,
जब जलाता है
वो हमारी बेटी।
ये तो रीत है
दुनिया की सदियों से
इस हाथ दे, उस हाथ ले
स्वर्ग और नर्क
सब यही है धरती पर
हम सब को लेनी होगी
शपथ!
ना देंगे ना लेंगे दहेज
शादी करेंगे साधारण
बिना लिए दहेज।
कुचलेंगे इस रावण को
ताकि ना जले कोई
हमारी बेटी
ना चढ़े
इस रावण की भेंट।
मुकेश गोयल ‘किलोईया’