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28 Jul 2019 · 1 min read

दहेज- एक अभिशाप

दहेज- एक अभिशाप
धन दौलत की लालच में
बहू को वेदी चढ़ा दिया
अंधा होकर पापी ने
कदम अपना यह बढ़ा दिया ।

बेटे की शादी को लोभी ने
अपना व्यापार बनाया है
दहेज की खातिर ही उसके
सिर पर सेहरा सजाया है ।

बेटी के पिता ने अरमानों से
सुंदर महल बनाया है
पाई-पाई जोड़ के उसने
शादी का धन ये जुटाया है।

लालच की सीमा नहीं है कोई
थोड़े ज्यादा में भेद नहीं
सुरसा सा मुख खोले लोभी
लेन-देन से खेद नहीं ।

अपनी बेटी फूलों से प्यारी
राज दुलारी कहलाती
ओझल हो नजरों से जब वह
मां-बाप को रोटी नहीं भाती ।

इस लालच का अंत नहीं है
पीड़ा सदा यह देता है
कर्ज में डूब कर एक पिता
चैन सुकून खो देता है ।

मांग नहीं पूरी जब होती
बहू को कष्ट दिए जाते हैं
लोभी ससुराल की पीड़ा से
उसके अरमान खो जाते हैं ।

घर आई दुल्हन का ससुराल में
आदर ना सम्मान हुआ
दहेज की खातिर बिटिया के
परिवार का भी अपमान हुआ।

ताने दे कर रोज सताया
जबरन उस को मजबूर किया
मन की पीड़ा दिखा ना पाई
अपनों से उसे दूर किया ।

आखिर मजबूरी में उसने
साहस से नाता तोड़ दिया
तंग आकर ससुराल से उसने
अपना संसार ही छोड़ दिया ।

दहेज बनी है महामारी
जन-जन को आज बताना है
बेटी और बहु में भेद नहीं
लोभी को यह समझाना है ।

Language: Hindi
260 Views
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