दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा
दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा की समस्याएँ जटिल और बहुपक्षीय हैं। जब मैंने एक परिपक्व महिला पुलिस अधिकारी से पूछा कि वास्तविक पीड़ित कितनी महिलाएं अपनी शिकायत लेकर थाने तक पहुंच पाती हैं? इस प्रश्न पर थोड़ी देर तक गंभीर रहीं और कुछ समय के बाद सहमति और असहमति दोनों जताते हुए उन्होंने कहा कि हालांकि यहाँ कई महिलाएं अपनी शिकायतें दर्ज कराती हैं, लेकिन कुछ वास्तविक पीड़िताएं पारिवारिक दबाव, सामाजिक बंधनों और डर के कारण शिकायत दर्ज नहीं करा पातीं।
उन्होंने इस ओर भी इशारा किया कि आजकल दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के कई मामलों में आरोप
ऐसे होते हैं जिनसे माता-पिता अपने पुत्र के विवाह को लेकर चिंतित होते हैं, विशेषकरसंपन्न और उच्च प्रतिष्ठित परिवार।
इसी के मद्दे नजर ओशो ने एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि विवाह की प्रक्रिया को कठिन और तलाक को आसान होना चाहिए, ताकि केवल मजबूत और गंभीर संबंध ही बने रहें।लेकिन हमारे समाज में यह बिलकुल उलट है|
आधुनिक समाज में, विशेषकर उच्च वर्ग में, पति-पत्नी के बीच अहंकार और सहनशीलता की कमी एक बड़ा कारण बन रही है, जिससे मामूली मतभेद भी कानूनी लड़ाई का रूप ले लेते हैं। कई मामलों में, छोटी-छोटी
बातों पर पति-पत्नी अदालत का सहारा लेते हैं, जिसके कारणसंबंधों में और कड़वाहट बढ़ जाती है।
केरल उच्च न्यायालय ने दहेज उत्पीड़न के झूठे मामलों पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि विवाह के समय बिना मांग के दिए गए उपहारों को दहेज नहीं माना जाएगा। हाल के वर्षों में विभिन्न अदालतों ने दहेज उत्पीड़न के झूठे मामलों पर कठोर टिप्पणियाँ की हैं।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी कई बार यह माना है कि आज के समय में धारा 498A कादुरुपयोग हो रहा है।
मानसिक क्रूरता को पारिभाषित करते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने टिप्पणी की है कि आत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना मानसिक क्रूरता माना जा सकता है।
सुप्रीमकोर्ट ने नरेंद्र बनाम के. मीना (2016) के मामले में इस बात पर ध्यान दिया किbआत्महत्या की धमकी देना और पति को परिवार से अलग करने का दबाव बनाना तलाक का वैध आधार हो सकता है। इसी तरह झूठे आरोप, विवाहेतर संबंधों के आरोप, और मानसिक यातनाएँ भी तलाक के आधार हो सकते हैं।
सोशल मीडिया पर मेरे द्वारा किये गए एक सर्वे के अनुसार समाज में हो रहे बदलावों के कारण तलाक के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है। परिवार के सदस्यों के अनुसार, कुछ प्रमुख कारणों में वकीलों की गलत सलाह, पति-पत्नी के बीच महत्त्वाकांक्षा, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बढ़ता महत्व, पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव, संयुक्त परिवार की कमी, और अनुशासनहीनता शामिल हैं। ऐसे सामाजिक और मानसिक
कारणों के चलते परिवारों का विघटन तेजी से हो रहा है।
संपूर्णतः, यह कहा जा सकता है कि दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के मामलों में सच्चाई और झूठ के बीच का अंतर समाज में गंभीर समस्याएं पैदा कर रहा है।इसपर सरकार को ध्यान देना लाजिमी है| इसके साथ- साथ माननीय न्यायालय को भी इस तरह के पारिवारिक मामलों को यथाशीघ्र निबटान करने की दिशा में त्वरित कार्रवाई की व्यवस्था करनी चाहिए|इस तरह के केस का निबटारा होते-होते पति पत्नी दोनों का उम्र हो जाने के बाद न वे घर के होते हैं न घाट के। इसलिए जरूरी है कि इस तरह के मामलों में त्वरित करवाई अत्यंत जरूरी और अपेक्षित है।
स्व रचित एवं मौलिक