दहेज़ …तेरा कोई अंत नहीं
यूं ही चलता आ रहा है, सिसिल्ला दहेज़ दानव का
न मिटा है, न कभी मिटेगा , यह जेहर दहेज़ का
न जाने कितनी जिन्दगी दफ़न कर दी इस दहेज़ ने
हर घर में लेने को आग लगी , इस दहेज़ की भेंट की !!
शादी में अगर दहेज़ न मिला , तो दुल्हे कि नाक कट जाएगी
घर जब वापिस बारात लोटे गी, तो शर्म उसे बहुत आएगी
गली मोहल्ले वाले ताने मार कर वैसे ही मार देंगे
तब तो पक्की शामत, उस गरीब बेचारी दुल्हन कि आयेगी !!
गर नहीं है दम अपने बल पर, तो क्यों शादी रचाते हो
जिस कि बेटी को लाते हो, उसी पर दोबारा रोब जमाते हो
सपने देखते हो आसमान में उडने के, तो भ्रम क्यों लाते हो
खुद आगे बढ़कर क्यों कहते, शादी बिन दहेज़ नहीं करवाते हो !!
आज तो अपनी संगिनी को दहेज़ कि आग में क्यों सुलगाते हो
धन दौलत, कार , जेवर लेकर क्यों नहीं बढती भूख मिटाते हो
दहेज़ को लेकर, लालच में फिर दुल्हन को आग लगते हो
क्या यह सब कर के, सच में तुम जीवन भर बच जाते हो !!
“अजीत” देखा है मैने कोई नहीं रोक पाया इस आग को
अख़बारों में रोजाना पढ़ा मरने वाली दुल्हन बेमौत को
जीवन भर पाली थी अरमानो कि खुशियन उस दुल्हन ने
बस “कंकाल” बनकर वापिस लौटी , अपने पीहर को !!
“नारी” तेरे जीवन में क्यों इतने कांटे भर दिए हैं राम ने
क्या कोई नहीं ऐसा जो खुशहाली भर दे तेरे अरमान में
में दुनिया बनने वाले से फिर यह पूछता हो , कि क्यों
क्या इसी लिए, दुल्हन के रूप में पैदा किया इस जात को !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ