दहेंज के झूठे केस
लघुकथा
दहेंज के झूठे केस
– बीजेन्द्र जैमिनी
जेल में हत्या के मामलें में उम्रकैद काट रहे कैदी से साक्षात्कार लेने पत्रकार पहुँच जाता है –
सूशील !आप तो मेरे सहपाठी है। जहाँ तक मैं जानता हूँ कि आप तो किसी से भी लड़ना प्रसन्द नहीं करते थे ? परन्तु आप ने पत्नी की हत्या कर दी ! क्या यह सचँ है ?
सूशील ने बिना निःसंकोच कहाँ -हाँ !मैंने पत्नी की हत्या की है। मुझे रोज-रोज धम्मकी देती थी।
– दहेंज के झूठे केस में सारे परिवार को जेल भिजावा दूँगी !
एक दिन सुसराल गया हुआ था । साँस -सुसर ने भी दहेंज के झूठे केस में फँसाने की धम्मकी दे डाली । तब मुझे अपने माँ-बाप,भाई-बहन का ख्याल आया। तभी मैंने वहाँ पड़े गड़ासे से पत्नी की हत्या कर दी और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। उस के बाद कोटं ने उम्र कैद की सजा सुना दी है। पत्रकार बोला-
क्या आप को कानून पर विश्वास नहीं था ?
– ऐसे फैसलें तो कोट के बाहर ही होते है बाहर फैसलें के लिए के लिए मोटी रकम चाहिए ! मेरे परिवार के पास नहीं है। पैसे के बिना…..!
पत्रकार सोच में पड़ गया। अतः उस ने निर्णय लिया कि हत्या जैसे कदंम दहेंज के झूठे केस का डर है !
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