*दहल जाती धरा है जब, प्रबल भूकंप आते हैं (मुक्तक)*
दहल जाती धरा है जब, प्रबल भूकंप आते हैं (मुक्तक)
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दहल जाती धरा है जब, प्रबल भूकंप आते हैं
प्रकृति के रोष के सम्मुख, मनुज तब फड़फड़ाते हैं
इन्हीं के बीच सीखा है, मनुष्यों ने सहज जीना
कदम कुछ लड़खड़ाते हैं, कदम फिर कुछ बढ़ाते हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451