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23 May 2020 · 1 min read

दस्तक़

कल देर रात आँख लगी थी,
ख़्वाबों ख़यालों में दुनिया सजी थी,

गोते लगाता, फिर तैरता, एतबार के समुंदर में,
पनडुब्बियों में जैसे जिंदगी रखी थी।

तड़के सुबह एक बवंडर का सामना हुआ,
तो देखा आंखें तर और खुली थी।

धड़कनों की रफ़्तार से अंदाज़ा हुआ,
खुशियों की दौड़ में ये कुछ ज्यादा चली थी।

बहुत मुश्किल से संभाला खुद को,
एहसासों का क्या ये तो मनचली थी।

सूरज की किरणों ने दस्तक़ दी तो लगा ,
दूर मुझसे शायद कोई तो नींद से जगी थी।

सोचा उस रहनुमा से सलाम दुआ कर लूं,
जिनकी ख़ामोशी से बरसों, दिल में खलबली थी।

.✍ देवेंद्र

Language: Hindi
1 Comment · 209 Views
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