दस्तयारी
हर ओर समंदर फैला है , दूर तलक बस पानी है ।
इकलौती कश्ती छोटी सी , रात बड़ी तूफानी है ।
दस्तयारी मिलेगी कैसे , और दस्तयार बनेगा कौन ।
यकीन मानिए ऐसे में , उम्मीद ही हर बेमानी है ।
साथ नहीं था पहले कोई , अब भी सब एकाकी है ।
चाहत की तो चाह ही झूठी ,यह बिल्कुल नादानी है ।
आलम ऐसा हुआ कि , अपना क़ायल कहीं नहीं ।
न हुजूम दोस्तों का कोई , न चेहरा ही नूरानी है ।
अशोक सोनी ।