दस्तक
ज़रा सी आहट होती है ,
और फिर दस्तक भी होती है ,
कभी कभी ।
इस शेदाई मन को लगता है ,
जैसे कोई आया हो ,
अभी अभी ।
मगर जाकर देखा तो कोई भी नहीं,
यही उम्मीद बार बार की ,
शायद किस्मत मेरा दरवाजा खटखटाती हो,
क्या यह मुमकिन है ?
मायूस होकर फिर लौट आती हूं,
ऐसे में जब कभी ।