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4 Nov 2021 · 1 min read

दश्त में शह्र की बुनियाद नहीं रख सकता

दश्त में शह्र की बुनियाद नहीं रख सकता
ख़ुश्क आंखों में परीज़ाद नहीं रख सकता

हर किसी को है फ़क़त मुझसे वफ़ा की उम्मीद
हर किसी को तो कोई शाद नहीं रख सकता

ज़िन्दगी भर के लिए अहदे-वफ़ा कर तो लिया
एक लम्हा भी जिसे याद नहीं रख सकता

बा-वफ़ा तू जो नहीं, ज़िन्दगी फिर और सही
ग़म की दुनिया यूँ ही आबाद नहीं रख सकता

शर्त इतनी है, फ़क़त हसरते – परवाज़ रहे
बांधकर फिर तुझे सय्याद नहीं रख सकता

मैं नहीं चाहता दस्तार उछाली जाए
ग़ैर के बज़्म में फ़रियाद नहीं रख सकता

तुझसे उल्फ़त का मैं दामन तो छुड़ा लूँ आसी
दिल तिरी यादों से आज़ाद नहीं रख सकता
__________________
सरफ़राज़ अहमद आसी

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