रावण के मन की व्यथा
अबकी बार दशहरे पर,
रावण अदालत पहुंच गया,
जज साहब से वह बोला,
माई लॉर्ड,मेरे साथ भी तो,
कुछ तो अब न्याय करो,
वर्षो से अन्याय सह रहा हूं,
अब तो मेरी सुनवाई करो।।
चुराया था सिया को एक बार,
सजा क्यों मिलती है बार बार।
अपराध किया था मैने एक बार,
सजा मिल चुकी है हजारों बार।
अपराध किया था मैने,हजूर,
सजा सारे परिवार को देते हो
ये कौन सी धारा थी हजूर,
जिसके अंतर्गत ये सजा देते हो।।
लक्ष्मण ने भी काटी थी,
मेरी सगी बहिन की नाक,
फिर सारे नियम कानून,
क्यो रक्खे थे तुमने ताक।
हनुमान ने उजाड़ी थी लंका,
और उसको भी थी जलाई,
फिर आपने उनको क्यो
सजा नही तुरंत सुनाई।।
मुझे मेरे परिवार के साथ,
क्यो हर वर्ष जलाया जाता है,
मेरे भाई बंधुओ को भी,
मुझे कंधा देने के अधिकार से,
क्यों वंचित किया जाता है ?
मेरी संपत्ति को जलाने पर,
क्यो नही दंड दिया जाता है ?
आज बलात्कार करने वालों को,
संसद में शान से बिठाया जाता है।
मैने तो सिया के छुआ भी नहीं,
फिर भी अपराध माना जाता है।
ये अन्याय नही,और क्या है
फिर कानून अंधा क्यो हो जाता है।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम