दशहरा
सावधान रहना सभी,रावण पुतला देख।
मार दिया श्रीराम ने,लिखा वेद में लेख।।
विजय पर्व के रूप में, मना रहे सब लोग।
रावण के गुण कर्म तो ,जिंदे कैसा योग ।।
मन में रावण आज भी,बाहर हैं श्रीराम ।
बाहर पुतले जल रहे,अंदर लंका धाम।।
सावधान मन पलट लो,अंदर करलो राम।
एक बार पुतला दहन,बन जावेगा काम।।
लूट पाट व्यभिचार से,होवे मुक्त समाज।
तभी मानिए आ गया,सिया राम का राज।।
मानव जीवन में सदा,राक्षस रहते साथ।
अवसर पाकर झूमते,खाली हृदय अनाथ।।
मन मंदिर यदि राम हो,माया होती फेल।
रावण रोता जग फिरे,देख भक्ति का खेल।।
पुतला सिर्फ प्रतीक है, जो समझें संकेत।
पर्व दशहरा सफलता,मन हो राम निकेत।।
राजेश कौरव सुमित्र
राजेश कौरव सुमित्र