दशमेश के ग्यारह वचन
दशमेश के ग्यारह वचन
ग्यारह अनमोल वचन अमृत,
आओ सँगतजी चित लायें।
दशमेश पिता गोविंद गुरू,
किरपा करके जो बतलायें।
जीविका कमाएँ मेहनत की,
उसमें दशांश का दान करें
कंठस्थ करें गुर की वाणी,
मेहनत करने से नहीं डरें।
धन यौवन जात ऊंचकुल की,
अभिमान नहीं मन में लायें।
दुश्मन से साम व दाम करो
फिर दण्ड भेद विधि अपनायें।
चारों विधि काम नहीं आये,
रिपु से भिड़कर तब युद्ध करो।
निंदा चुगली ईर्ष्या त्यागो,
मेहनत करने से नहीं डरो।
परदेशी दुखी अपाहिज की,
आगे बढ़कर के करो मदद।
कोई गरीब आश्रयरहित,
दो वस्तु अन्न या द्रव्य नकद।
यदि किया वचन तो करो पूर्ण,
करके वादा कभी न मुकरो।
नहीं कर सकते पूरा उसको,
निज मुख वचन नहीं उचरो।
अश्वारोहण व शस्त्र ज्ञान,
अपनी रखवाली करना है।
तन मन दोनों के स्वास्थ्य हेतु
कसरत से कभी न डरना है।