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27 May 2019 · 1 min read

#ग़ज़ल-35

ग़ुनाह करते हुए रुह तेरी रोती ही नहीं
नमी नहीं आँख में पर आँखें सोती ही नहीं/1

छिपा मगर दर्द झलकेगा सूरत-ए-आइना
दवा यहाँ झूठ की कोई भी होती ही नहीं/2

ज़ुदा-ज़ुदा राह लगती है तेरी क्या राज है
ग़िला कहीं हो मुझी से कहके धोती ही नहीं/3

मिला नज़र तू सही तो सजदा करता हूँ तुझे
अलग कभी यार अपनो से रुह खोती ही नहीं/4

रज़ा मज़ा प्रीत का प्रीतम देती है डूबके
मिला अगर दिल कहीं ग़म साँसें ढ़ोती ही नहीं/5

आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित..radheys581@gmail.com

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