दल बदल नेता
आया हूं मै दल में
विचारधारा के लिए
निस्वार्थ भाव से
जन सेवा के लिए
जनसेवा करता नहीं
मैं कोई पद पाने के लिए
मैं तो पैदा ही हुआ हूं
जनसेवा के लिए
राष्ट्र के विकास और
भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए
कुछ वर्ष ये भावना रहती है
जैसे जैसे लोकप्रियता बढ़ती है
धीरे धीरे महत्वाकांक्षाएं भी बढ़ती है
अब उसके सामने विचारधारा भी
बौनी पड़ जाती है
और दूसरे विकल्पों की
तलाश में जुट जाता है
निष्ठाएं दल से बदल कर
कुर्सी पर आ जाती है
अब अपना दल दलदल और
कहीं और कमल नजर आता है
अपना दल डूबता जहाज और
कहीं और चढ़ता सूरज नजर आता है