दलाल ही दलाल (हास्य कविता)
दलाल ही दलाल (हास्य कविता)
मीडिया भी दलाल मुल़्क के हुक़्मरान भी दलाल
कौन करेगा इनके काले कारनामों का पर्दाफाश?
न्यायपालिका कार्यपालिका भी बन गए दलाल
सुना है मोटी कमाई के चक्कर मे जज साहाब भी दलाल?
मंत्री संत्री या हेडमास्टर हो या चपरासी?
जनसेवक तो बन बैठा दलालों का सरदार?
पुलिस दरोगा वकिल हो गए मालामाल?
जहाँ देखो वहीं दलाल ही दलाल?
किससे करोगे तुम फ़रियाद? कौन उठाएगा आवाज़?
मीडिया तो बन गई दलालों का दलाल?
गवाह ख़रिदे बेचे जा रहे? कोर्ट कचहरी भी बिके हुए?
देशद्रोही बना झूठे मुकदमे मे बेकसूर पीसे जा रहे?
खु़दा खै़रियत रखे लोगों का? देखो तो हर कहीं?
लूट खसोट वबाल मचाए दलाल ही दलाल.
कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीपाईट)