दर्शय चला
दर्शय चला
ज़िंदगी को बहुत करीब से देखा,
गम देख मुझे मुस्कुरा रहें थे,
दर्द है उनका दिल मैं बहुत,
आंसू आँखों में झिलमिला रहें थे ।
उनकी छुवन का अहसास जागा,
हाथ मेरे उनको बुला रहे थे,
मैं पत्थरों की तरह बूत बना रहा,
पर अहसास दिल में आ रहें थे ।
संग मेरे सपनों का दर्शय चला,
ख्याल मुझको जगा रहें थे,
मैंने पलकों को बारहा झपका,
मेरे अपने मुझको बुला रहे थे ।
आपका अपना दोस्त
तनहा शायर हूँ – यश