दर्शन
दूर से झटके से देख लूँगा तुम्हे
मैंने दर्शन किया मान लेना तुम
हालांकि मैं मान नहीं पा रहा हूँ कि मैने दर्शन किया
बात कुछ यूं है के मैं वीआईपी नहीं हूँ
गर होता तो पहुंच जाता तुम्हारे पास और निहार लेता जी भर के
और तुम्हारे चरणों को भी छू लेता
मुझे तो तुम्हे ठीक से देखना भी मयस्सर नहीं है
भाव अनन्त है पर इसका निश्चित अंत है
मुझे तुम पर चढ़े फूल, फल अथवा हार भी मयस्सर नहीं
भला मुझे दे ही कोई क्यों
पुजारी जी को सभी भक्त नजर नहीं आते
असल भक्त तो वीआईपी या टिकिट वाला है
हम तो भीड़ में चलते हैं और धकेल दिए जाते हैं
कभी कभार बिना देखे भी
बड़ा असमंजस है मन में
के तुम्हारे दर्शन के लिए
वीआईपी होना जरुरी है या भक्त?
हो सके तो जवाब जरूर देना
और हाँ वीआईपी कोटे की कोई सिफारिश ले के आऊँ तो दर्शन जरूर दे देना
क्योंकि उन्हें ही तो हक़ है तुम्हे निहारने और छूने का
जबकि जानते हो उनके भाव में और एक गरीब के भाव में जमीन आसमान का अंतर है
ज्यादा कुछ कहूंगा तो नाराज हो जाओगे
हो भी गए तो क्या हुआ???
दर्शन तब भी नहीं देते थे
अब भी नहीं देते हो
बहुत होगा तो दोगे ही नहीं
हाँ एक बात है के मैं प्रयास करता रहूँगा के तुम्हारा दर्शन मिल जाए
कहा सुना माफ़ करना
अपने लम्बरदारों का दिल साफ करना
– सिद्धार्थ गोरखपुरी