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3 Dec 2021 · 1 min read

दर्प

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दर्पण में अपना चेहरा देखकर
दर्पण को चिढ़ाना दर्प है।
समर्पित मन से खुद को अर्पण करना
व्यक्तित्व-बिम्ब के विंदु,रेखाओं में
और आकलन अपना
खुद का खुद से संपर्क है।
दर्प व्यर्थ नहीं निरर्थक है।
दंड कर लेता है अपना स्वयं ही
निर्धारित।
इसलिए जीवन का पतित गर्त है।
दर्प भाषाओं से,कर्मों से होता है परिलक्षित-
तुम्हें या हमें
सिद्ध करता हुआ तुच्छ,
अपनी तुच्छता निर्बाध करता है आरोपित।
दर्प सुंदर है आकांक्षाओं का।
अथक प्रयत्नशील।
सुनियोजित समाज के लक्ष्य हेतु।
अवांक्षित है तो बेकार सारा ही दलील।
दर्प दृढ़ हो, स्वयंसिद्ध।
अहम् से अनाच्छादित।
कृष्ण का कृष्ण होने का दर्प
सभाओं में द्रौपदी के संरक्षण को समाहित।
दर्प नमस्कृत हों।
स्वच्छ और सुवासित हों।
कल्याण से परिभाषित हों।
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Language: Hindi
392 Views
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