दर्पण सब जानता है
यह जो दर्पण है ये सब जानता है
असली नकली को पहचानता है
हद बेहद जो निखरता संवरता है
दर्पण पूर्णता असलियत जानता है
अपनों के चेहरे धूँधले हो जाते हैं
जब अपने बहुत दूर चले जाते हैं
ना हो जब उम्मीद पुनर्मिलन की
दर्पण में हाल ए दिल पहचानता है
जाना होता है जब किसी के साथ
होती है मिलन की आस उन साथ
देखती जब प्रेयसी बार बार दर्पण
दर्पण ही प्रथम सौंदर्य निहारता है
छूट जाता है जब प्रियतम का साथ
हाथों में लिया हुआ वह नर्म हाथ
छटपटा के जाए बिखर मुकुर पास
दर्पण नमी आँखों की पहचानता है
टूट कर .बिखर जाते हैं हसीं सपने
छोड़ साथ, किसी ओर संग अपने
दर्द ए दिल जब हद से बढ जाता है
दर्पण दर्द जख्म दिल का जानता है
सुखविंद्र सिंह मनसीरत