दर्द
उगते और डूबते
सूर्य की भाँति लाल
मेरी माँ की बूढ़ी आँखें
विवश करती हैं मुझे
बार बार
अपने भीतर झाँकने के लिए
यह जानने के लिए कि-
कौन छुपा है
रक्त रंजित अमौन
जल रहा है जो रात दिन
अखण्ड ज्योति की तरह
उगते और डूबते
सूर्य की भाँति लाल
प्रसन्न-अप्रसन्न मुद्रा में
अट्हास भरता हुआ
चीखता है-
मत देख मुझे
मैं देखने के लिए नहीं
अनुभव के लिए हूँ।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”