दर्द
हँसती हुई जिंदगी को कैसा दर्द दिया है?
तेरा दिया जहर अमृत समझ पिया है ।
पर हर रोज मैने माँगा तुझे दुआओं में,
कितना कहर ढाया मुझ पर फिजाओं ने।
तेरे इन्तजार में ही हर लम्हा जिया है,
हँसती हुई जिन्दगी को कैसा दर्द दिया है?
अपना बनाकर क्यूं कर दिया हमे बेगाना,
दिल चीरकर अब क्या पडेगा हमे दिखाना?
जालिम जमाने के हर प्रश्न का जवाब दिया है,
हँस्ती हुई जिन्दगी को कैसा दर्द दिया है?
अब आ भी जाओ कुछ बात बाकी है,
इस जिन्दगी की सबसे हसीं रात बाकी है ।
दर्द अपना मैने शब्दो मे बयां किया है,
हँसती हुई जिंदगी को कैसा दर्द दिया है?
प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव अलवर (राजस्थान)