दर्द
दर्द जो वक्त ने दिया
खुश हो कर मैने पी लिया सारा
दर्द जो परायों ने दिया
पानी सा समझ बहा दिया सारा
दर्द ही यह है सार मेरा
दर्द अपनों का जो मिला
छुप -छुप मन में समा लिया सारा
बेबस हूँ उदास हूँ सोच कर
कि दर्द , पीर जो मीत ,प्रीत से मिली
कहाँ दफन कर मैं आऊँ
कतरा – कतरा लहूलुहान
वो पीर किसी को बाँट न पाऊँ मैं कभी
तार – तार कर दूँ हर धड़कन
पर दिल मीत सिवा कही ओर दे न पाई
क्योंकि मीत तो दिल मेरे है
डॉ मधु त्रिवेदी