दर्द
कहीं भूख से बिलखता बचपन।
कहीं परोसे गए हैं भोग छप्पन।।
करते हैं सोचने को मजबूर ।
इन मासूमों का क्या कसूर ।।
कहीं तरह-तरह के कपड़े।
और कहीं ठंड से शरीर अकड़े।।
खींचता है हमारा ध्यान।
क्या है यह आज का इन्सान ।।
क्या है यह इन्सानियत ।
या है यह गाथा -ऐ-मजबूरी
कहीं किलकारता बचपन।
और कहीं नि:शब्द जीवन।।