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7 May 2024 · 1 min read

दर्द सुर्खी है

दर्द सुर्खी है मेरी ताज़ा ग़ज़ल है जिंदगी
रेत की दीवार शीशों का महल है जिंदगी

चिलचिलाती धूप में बहते पसीने की तरह बेसबब बेकार सस्ती है सहल है जिंदगी

जिंदगी और मौत के इस खेल में ए दोस्तों मौत लाजिम है मगर उसकी पहल है जिन्दगी

क्या बताएं क्यों इसे ढोने की आदत पड़ गई
याद रामायण है और टूटी रहल है जिंदगी

वक्त ने जिस दौर को बोझिल बना कर रख दिया
क्षुब्ध उस माहौल में मीठी चुहल है जिंदगी

संग से भी जियादा खुरदुरी और सख्त ये फूल से नाजुक कभी कोमल सजल है जिंदगी
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
14 वी रचना

28 Views
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