दर्द बेटियों का
हर्षित था परिवार सबको था किसी का इंतजार
कोई बेटे कोई भतीजे तो कोई पोते को था बेकरार
कुछ पल में बो आई बारी घरभर में गूंजी किलकारी
लगा शायद अपनों के दिल टूटने से बो रो रही बेचारी
आंखें कजरारी जिसकी सूरत चांद से प्यारी
सपने अपने भूल कर हरकोई उसपर बलिहारी
कुदरत का उपहार मिला उसको भी सबका प्यार मिला
बस बेटे की चाह का सबको थोड़ा इंतजार मिला
किलकारी कब बोल हो गईं बातें उसकी अनमोल हो गईं
खाना बनाना सीख गई कब रोटियाँ उसकी गोल हो गईं
फिर जब बो आई घड़ी हरकिसी की उत्सुकता बड़ी
जांच कराया फिर बेटी थी दिल में निर्लज सोच पड़ी
इंसानियत पर वार किया रिश्तों को तारतार किया
दया ना आई अपनी बेटी पर जिसको कोख में मार दिया
मां हरलम्हां रो रही बेटी मां से पूछ रही
बताओ मेरी छोटी बहिन तू क्यों मुझसे छुपा रही
कैसे तुम कैलाशी हो अमरनाथ हो या काशी हो
मेरे प्रभू मुझको बता क्या तुम भी भारतवासी हो
तू सो रहा तेरा जग रो रहा
तेरी भूमि पर यह सब क्या हो रहा
बेटे को पढाया हर ओर आगे बड़ाया
बेटी को क्यों दहलीज के अंदर छुपाया
ना पड़ने दिया ना आगे बड़ने दिया
हाथ पीले कर घर से घर में रहने दिया
दुनिया ने सताया हर गम अपना छुपाया
बेटी ने एक नहीं दो घरों को स्वर्ग बनाया
अब तो रहने दो उनको भी कुछ कहने दो
एक बार बेटियों को बिना बंदिशों के जीने दो