दर्द बना है पैरहन मेरा
दर्द बना है पैरहन मेरा चेहरा फक्क रहता है
उसके ही ख़वाब बूनूंगा ऑंखें मुझ से कहता है
पलट कर देखने भर की फुर्सत नहीं जिसको
हाय ये दिल उसी के अक्स ए पहलू से लिपटा रहता है
नींद से ऑंखें बोझल हैं पर दौड़ ख़तम नहीं होती
यार के दहलीज का अक्सर खाक छाना करता है
~ सिद्धार्थ