दर्द दिल का किसी को सुनाता नहीं
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दर्द दिल का किसी को सुनाता नहीं
हाँ मगर आजकल मुस्कुराता नहीं
आँसुओं का समंदर है दिल में मेरे
एक आँसू भी लेकिन बहाता नहीं
बन गई है अमावस मेरी ज़िंदगी
मैं दिवाली पे भी घर सजाता नहीं
जब से घर का सुकूं-चैन है खो गया
मैं कभी घर पे ताला लगाता नहीं
रोग क्या है मुझे लोग हैं पूछते
नाम तेरा किसी को बताता नहीं
तू मुझे छोड़कर जा चुकी है कहीं
क्या तुझे मैं कभी याद आता नहीं
छोड़कर जिस तरह से मुझे तू गई
मैं कभी छोड़कर तुझको जाता नहीं
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’