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15 May 2024 · 1 min read

दर्द को जरा सा कलम पर

दर्द को जरा सा कलम पर
क्या उतारा?
जिंदगी हाथों हाथ बिकने लगी
घर घर की चौखट पर।

हर तरफ हाथ ही हाथ थे।
पर मदद के लिए नही
इसी कशमकश में दिन बीत गए।
अपने कौन कौन है।

करतूते भले ही मेरी थी
पर शौक तो ज़िंदगी को भी था ना
निभाते निभाते कब बूढ़े हो गए
जमाने को भी पता नहीं चला।

ये जो चेहरे पर झुर्रियां है ना
ये उम्र की नहीं है।
जिंदगी के उस हालात की है
जहां पर मैं भीअनपढ़ ही निकला।।

Language: Hindi
31 Views
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