दर्द की चादर ओढ़ कर।
दर्द की चादर ओढ़ कर कोई गा रहा है।
बना कर गमों को नगमें वो सुना रहा है।।1।।
अपने दर्दे दिल को सबसे छिपा रहा है।
सिल कर ज़ख्मों को वो मुस्कुरा रहा है।।2।।
सभी को जीने का हुनर सीखा रहा है।
सुखदुख है जिंदगी सबको बता रहा है।।3।।
सूखकर फूल ए गुलशन उजड़ गया है।
अब्रे आब बंजर जमीं को तड़पा रहा है।।4।।
ज़रूरी नहीं कि सदा सच ही सही हो।
छोटा सा इक झूठ उसको हंसा रहा है।।5।।
सबकी जिन्दगी ना मुकम्मल होती है।
गरीब को वो झूठे ख़्वाब दिखा रहा है।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ