दर्द का ज़ाम पीना नही आया
ज़िन्दगी को ज़ीना नही आया
दर्द का ज़ाम पीना नही आया
दर बदर भटकते रहे ज़ालिम दुनिया में
पर लोगों को समझना नहीं आया
नक़ाब तो हज़ार थे इस जहाँ में
मुखोटों के साथ ज़ीना नही आया
पीठ पर सरहाते हुए हाथ से
हाथो को खंज़र चलाना नही आया
बदलते समय के तरह समय के साथ
मौसम की तरह बदलना नही आया
अज़ब जज़्ब है हक़्मारानो कि कुर्सी में
ज़फ़र(जीत)के लिए नखरे(डिंगहांकना)नही आया
हाथ सदा मदद के लिए उठते है
गरीबों हक़ की रोटी छीनना नही आया
दूसरों के सहारे तो जनाज़े उठते है
पैर खींचकर दूसरों के आगे बढ़ना नही आया
मुश्किल है हालात तो क्या हुआ
मुश्किल हालातों में भूपेंद्र को झुकना नही आया
भूपेंद्र रावत
22।08।2017