दर्द का दरिया
दर्द का दरिया पार कर हम सभी आए है!
उनमे कुछ तो रोए और कुछ मुस्कुराए है!!
हुआ जब मै पैदा, तो बेतहाशा रो रहा था!
पर मा-बाप ,दादा-दादी सब मुस्कुराए है!!
जिसने जना था मुझे वो तो खिलखिलाई!
रोक नही पाई अपनी रुलाई बेटा जाए है!!
जिसका बुझ गया घर का चिराग वो रोया!
और बुझाया था जिन्होने,खिलखिलाए है!!
है यह नियति, कितनी कमज़र्फ-खुदगर्ज,
आड मे मज़हब की उन्हौने मंसूबे बताए है!!
बोधिसत्व कस्तूरिया मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित