दर्द का आलम हमें …..
बैठे थे तन्हा, जहन में ख्याल आया कई दफा,
करीब थे जो शख्स मेरे आज हैं वो क्यूँ खफ़ा।
खामोशिया उनकी हमें ये मर यूं ही डालेंगी,
तोड़ कर फिर दिल मेरा खता न अपनी मानेंगी।
नही कोई शिकायते नही हैं अब कोई गिला ,
दुनिया का दस्तूर हैं चाहने से ना कुछ मिला।
मौसम ए चाहत के हो गए है अब ख़त्म,
ना कोई खता थी मेरी फिर क्यूँ ढाये थे सितम।
दर्द का आलम हमें वो इस कदर बतलायेंगे ,
दर्द देकर भी भला क्या भूल हमें वो पाएंगे ।
भूल भी जाते हमे वो गर अगर वो चाहते,
याद के दरिया में डूबे दिल को मिलती राहते……….