दर्द-ए-ग़म
दर्द-ए-ग़म =
लेखिका- श्रीमति अलका जैन, रानीपुर झांसी
1, गर रोने से दर्दो ग़म का
मिटना मुमकिन होता!
तो दुखियों के अश्कों में
जमाना बह गया होता !
2, न खुशी की सराय है कोई
न ही सुकून-ए-डेरा है!
दिल की शाख पे बस
दर्दों ग़म का बसेरा है !
3, फकत इक दर्द से तुम
इतने मायूस हो गये,
बेहिसाब दर्द सहकर भी
देखो मुस्कुरा रहे है हम !