” दर्द -ए- दिल “
” दर्द -ए- दिल ”
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छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए
क्या बेबसी हुई जो तुम मुस्कुराके चल दिए
हम जानते हैं तुम बेवफा तो नहीं
फिर क्यूँ आंखों में अश्कों को छुपा के चल दिए
छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए!
तेरी रह गुजर मे हमने सीखा था दिल लगाना
किस बात की कमी थी जो ठुकरा के चल दिए
तेरे थे हम सनम कोई गैर तो नहीं
अपना बना के हमको फिर छोड़ चल दिए
छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए !
दिल तेरा था मेरा आशियाना खाली करा दिए
हम अपने थे सनम तेरे किराएदार बना दिए
क्या कमी थी जो हमे अपनों में माना ही नहीं
बेरुखी ऐसी भला क्यूँ झटक के चल दिए
छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए !
मासूम सी अदा पर तेरी दिल हमने लुटा दिए
इस दिल के आईने को तोड़ के चल दिए
दिल में हमें अपने कभी बसाया ही नहीं
हम देखते रहे चौकठ से तुम भुला के चल दिए !
छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए !
नैनों में बसी थी जो वो तस्वीर मिटा दिए
हाथों में लिखी थी जो वो लकीर मिटा दिए
लिखा जो तुमने प्यार का फसाना ही नहीं
हम पूछते रहे और तुम नजरें झुका के चल दिए
छुपा के दर्द जहां का सीने में चल दिए!
*****सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)*****