दर्द एक फौजन का
चिंता नै घेर लेई पिया जी मेरी या काया।
तीन रोज होयै सजन तेरा फ़ोन ना आया।।
चौबीस घँटे रह नहीं सकता बात करै बिना।
फ़ोन प ऐ हँसी मजाक मेरे साथ करै बिना।
नींद नहीं आवै तन्नै बालक याद करै बिना।
रोज उणपै ज्ञान रस की बरसात करै बिना।
तीन दिन तै फोन ना करा न्यू जी घबराया।।
उड़ी हमले के बाद यू पापी मन डटता ना।
तेरे म्ह जी पड़ा रह ध्यान म्हारा हटता ना।
किस टैम के होज्या पिया बेरा पटता ना।
जंग छिड़ री होती तो मन यू भटकता ना।
आंतकवादियां नै दखे छदम युद्ध चलाया।।
पीठ पीछै वार करैं ये कायर आंतकवादी।
स्याहमी तै लड़ नहीं सकदै छल के आदी।
म्हारै हिन्द की चाहवैं सँ दिन रात बर्बादी।
बेकसुरां नै मार कै ये खुद नै बतावैं जेहादी।
इनकै इसै छल कपट नै कालजा पकड़ाया।।
पीठ दिखावै कोण्या तू या म्हारै सबकै जरै स।
फौलाद का स सीना तेरा दो चार तै ना डरै स।
रोज फ़ोन करा कर बात करै बिन ना सरै स।
बालक बी करैं चिंता न्यू भितरला मेरा भरै स।
हाल खुद का सुलक्षणा प मन्नै लिखवाया।।
©® डॉ सुलक्षणा अहलावत