दरिन्दों को छुड़ाना चल रहा है
—–ग़ज़ल——
1-
सियासत का ज़माना चल रहा है
घरों को बस जलाना चल रहा है
2-
जुदा जब से हुए हो तुम तभी से
ग़मों में दिल जलाना चल रहा है
3-
ग़रीबी मार ही देती मुझे पर
दुआओं का ख़ज़ाना चल रहा है
4-
कहीं इंसाफ़ की बातें चलें तो
दरिन्दों को छुड़ाना चल रहा है
5-
अभी तो रोक लो तीरे-नज़र को
मेरे दिल पर निशाना चल रहा है
6-
जलाया जब चराग़े-इश्क़ तो फिर
किसी आँधी का आना चल रहा है
7-
दुआ प्रीतम कहाँ पूरी हुई बस
वो हाथों का उठाना चल रहा है
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प्रीतम राठौर भिनगा
श्रावस्ती(उ०प्र०)
20/04/2018