दरिन्दें
गाँधी क्यों तुम
पढ़ा गये
अहिंसा पाठ
हैवानियत चरम
आ गयी
लूट रही इज्जत
खुले आम
हो रही
इन्सानियत
तार तार
कानून का
करते एतवार
बेइज्जत होती
नारी आज
न चला
कृष्ण का
चक्र आज
न उठा
राम का
धनुष आज
बिलखती रही वो
उठती रही चीत्कार
हो गयी बेबस वो
न पसीजा दिल
दरिन्दों का
है यही सजा
इन दरिन्दों की
मारे इन्हें भी
वैसे ही
जैसे मारा इन
दरिन्दों ने
निर्भया को
बैठा दो डर इतना
दरिन्दों में
कांपे रूह
करते कोई
गलत काम
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल