दरार के व्यापारी
एक दरार डाली गई थी अपनो के बीच,
सदियों पहले मेरे हिंदुस्तान में।
कई मनुष्य और उनके सपने जल गए,
रंजिश फैलाने की इस साज़िश में।
कुछ अजनबियों ने की थी जिसकी शुरुआत,
आज अपने ही परिवर्तित कर रहें हैं उस दरार को एक खाई में।
बचा लो मेरी मातृभूमि को इन दरार के व्यापारियों से,
नहीं समा पा रहा एक नफ़रत से जलता हुआ हिंदुस्तान मेरी आँखों में।
-सिद्धांत शर्मा