दरारों का दोष
विवादित हुआ यह घर आंगन,
जहांँ परिवारों का बसेरा था,
ढल चुकी है अब उम्र उसकी,
जिनसे होता वो सवेरा था ।
बिकने को खड़ा है मकान ,
खाली वर्षों से है पड़ा हुआ ,
जर्जर तन लेकर चले गए ,
दरार मकान में अब पड़े हुए ।
कितनी शिद्दत से एक-एक ईट रखी ,
सब बच्चों संग नींव है बनी ,
तरस रहा है उन रहने वालों को ,
जिनके लिए भवन निर्माण की रीत बनी ।
बंँटवारा अब कर रहे हैं ऐसे ,
एक कोख से हुआ न हो जन्म जैसे ,
गिराने को अब झगड़ रहे हैं ,
दरारों का दोष सब पकड़ रहे हैं ।
# बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।