दरवाजे
घर की इज्जत होते है
दरवाजे
दरवाज़े के पीछे की दुनिया
होती है निराली
लड़ते है पति पत्नी
मन का निकाल फिर
हो जाते हैं एक
लड़ते है भाई बहन
एक कट्टी एक मिट्ठी
में छिपा है प्यार अनूठा
दरवाज़े की मजबूत
बुनियाद होते है
चौखट , साकल और कुन्डी
आधा दरवाजा खोले
प्रेयसी ,
प्रीतम की
प्रतीक्षा में
लिख गये
ग्रन्थ अनेक
बंद दरवाजे है
बंद मुट्ठी
इसलिए
“दरवाजे खुलवाने की
आज ज़िद न करो ।”
लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल