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2 May 2020 · 1 min read

(( दरख्त ))

आज उस दरख्त की मीठी हवा , भी मस्तानी हो गयी ,
कल उस दरख्त के नीचे , कुछ पल ठहर गए थे वो ,,

रात गुस्से में उनसे , रूठ कर सो गई थी मैं ,
लड़ाई में भी सोते हुए ,मेरी ज़बी को चूम गए थे वो ,,

मैंने यू ही दिल्लगी में कह दिया के ,और भी है मेरे चाहने वाले ,
जो देखा गौर से तो , सर से पाव तक सिहर गए थे वो ,,

लोग मोहब्बत में हटा देते है , महबूबा का दुप्पटा अक्सर कांधे से ,
जो कभी मेरा दुप्पटा गिर जाये तो , मेरी चोटी से बांध गए थे वो ,,

खुद के लिए दो कदम चल पाना ,भी पहाड़ के जैसा हो जिसका ,
मेरी एक फरमाईश पे ,मिलो पैदल चल कर गए थे वो ,,

मेरे गुनगुनाने के शौक में कुछ , आरज़ू उनसे भी की साथ देने की ,
साथ इतना दिया कि पूरे मोहल्ले को , सर पे उठा कर गए थे वो

Language: Hindi
4 Likes · 1 Comment · 439 Views
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