दया***
हृदय से दया की अमृत धारा,
हमको सदा बहानी है।
दीन दुखी असहायों को,
अमृत धारा से सिंचित करना हैं।
न रहे कभी गम का साया,
ऐसा कल्प वृक्ष उगाना है।
हृदय से दया की अमृत धारा,
हमको सदा बहानी है।
जीवन के इस संग्राम में,
कभी आहत न होना है।
सतत दया का दीप प्रज्वलित कर,
हमें सदा रण वीर होना है।
नई चेतना की जागृति कर,
घर-घर तक पहुंचाना है।
दया करुणा प्रेम का,
सभी को पाठ पढ़ाना है।
हृदय से दया की अमृत धारा,
हमको सदा बहानी है।।