दयालू मदन
बाल कहानी
दयालू मदन
गुजरात राज्य में समुद्र के किनारे एक गाँव था-रामपुर। गाँव के लोगों का मुख्य व्यवसाय था-समुद्र के पानी से नमक बनाना तथा मछली पकड़ना। उसे वे पास के नगर में बेच देते, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती थी।
उसी गाँव में मदन अपनी माँ के साथ रहता था। मदन जब तीन साल का था, तभी उसके पिताजी की मृत्यु एक बस दुर्घटना में हो गई थी। बड़ी मुश्किल से पाल-पोसकर उसकी माँ ने उसे बड़ा किया।
दोनों माँ-बेटे बहुत ही धार्मिक तथा दयालु प्रवृत्ति के थे। वे अन्य गाँव वालों की तरह मछली नहीं मारते थे। वे समुद्र के पानी सेे नमक बनाते थे। मदन उसे शहर में ले जाकर बेच आता। इससे उसे बहुत कम पैसे मिलते। इसलिए कई बार मदन और उसकी माँ को भूखे ही रह जाना पड़ता।
एक दिन मदन ने अपनी माँ से कहा कि क्योें न हम भी समुद्र में ढेर सारा मछली मारकर पैसा कमाएँ, पर माँ ने साफ मना कर दिया।
एक बार मदन की माँ बीमार पड़ गई। मदन पड़ोसियों से उधार लेकर माँ को इलाज कराने लगा, पर माँ की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि वह दिन-प्रतिदिन कर्ज से डूबता ही जा रहा था।
मदन इसी चिंता में एक दिन समुद्र के किनारे घूम रहा था, तभी ऊँची लहर के साथ एक बड़ी मछली भी आ गई, जो तट पर ही रह गई।
मदन सोचने लगा कि यदि वह इस मछली को ले जाकर बाजार में बेच दे, तो खूब पैसा मिलेगा और माँ का अच्छे से इलाज हो जाएगा।
तभी उसकी अंतरात्मा से आवाज आई- ‘‘ये क्या सोच रहे हो मदन ? यदि तुमने ऐसा किया तो तुम्हारी माँ तुम्हें कभी माफ नहीं करेंगी।’’
मछली पानी में जाने के लिए तड़पने लगी। यह देखकर मदन को उस पर दया आ गयी। उसने बिना देर किए मछली को उठाकर समुद्र में डाल दिया।
‘‘मदन, तुम बहुत अच्छे हो। तुमने मेरी जान बचाई है। मैं तुम्हारी सहायता करूँगी। तुम यहीं रूको।’’ उस मछली ने कहा और समुद्र में चली गई।
मछली को मनुष्य की भाषा में बोलते देख मदन आश्चर्य में पड़ गया। वह जिज्ञासावश समुद्र के किनारे खड़ा रहा।
कुछ ही देर में मछली तट पर आई और बोली- ‘‘यह मोती बहुत कीमती है। इसे बेचकर तुम अपनी गरीबी दूर करो।’’
मदन उसे ले जाकर शहर में बेच दिया। इससे उसे बहुत पैसे मिले, इससे वह अपनी माँ का अच्छे से इलाज करा सका और माँ-बेटे दोनों सुखपूर्वक रहने लगे।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़