दयनीय वृद्धावस्था
शतरूपा सी कतिपय वृद्धाऐं,
मनु मानिंद सम्मान्य वृद्ध अति,
देवभूमि के पथ विभिन्न पर,
दृश्यमान लाचार निराश्रित।
क्रूर काल के कर कठोर ने,
निस्तेज चारु मुखमण्डल पर,
वक्र शिरामय रेखाओं से गहरा,
किया सुचित्रित मानचित्र शुचि।
यौवन पथ पर व्यस्त स्वयं में,
आत्मकेन्द्रित निज जीवन में,
स्नेह मात्र की नहीं दृष्टि भी,
उर किंचित नही व्यथानुभूति।
नैतिक मूल्य हुए परिवर्तित,
अन्यत्र लुप्त हो गयी मनुजता,
दृश्यमान चहुँओर विविधता,
कहीं दृश्य न तनिक एकता।
–मौलिक एवम स्वरचित–
अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)
(अरुण)